Wednesday, July 1, 2015

कितना पढ़ेगा रे - the xaam saga in medical college

"अरे कितना पढ़ेगा रे?"
"कहाँ कुछ पढ़े हैं? सब तो बकिये है बेटा!'
"KC मत करो. बेटा सब तो रंग दिए हो और हमको उल्लू बना रहे हो "
"कहाँ रे!एक ही तो रीडिंग किये हैं. कहाँ कुछ याद रहता है?'
"अरे तो कौन मारे honours लाना है, बस पास हो जाना है और क्या?"
"हाँ! हाँ! बोल्बे करोगे. बेटा जब मार्क्स आएगा तो मालूम चलेगा. मेरा तो विकेट गिर जाएगा. इस बार suplee पक्का है. बेकार आ गए मेडिकल कॉलेज में. साल भर पढो और फिर क्साम टाइम भी पढो. ....मेरा दोस्त लोग इंजीनियरिंग कॉलेज में है, साल भर अंग्रेजी फिल्म देखता है और एग्जाम टाइम में नोट्स रट के पास हो जाता है.किस्मत अपनी अपनी. मेरा भी हुआ था AIEEE में , किस्मत में कुत्ता **** था कि छोड़ के आ गए यहाँ. कितना अच्छा कांसेप्ट था मेरा फिजिक्स में. यहाँ तो बायोलॉजी में बस रटते रहो. हमसे तो रटा नहीं जाता है भाई. अब क्या करें? मेडिकल साइंस में और है ही क्या? बिना रटे तो कुछ भी संभव नहीं है यहाँ."

ऐसा ही कुछ माहौल होता है, हर बार, हर बैच के साथ,हर एग्जाम के पहले, लगभग इंडिया के हर मेडिकल कॉलेज में. सब हॉस्टल की लॉबी में बदहवास से भागते नज़र आते हैं. और सबसे वही चिर परिचित सवाल-" कितना पढ़ेगा रे?" और वही चिर-परिचीत जवाब. मगर कमाल है की कोई  बोर नहीं होता.


to be contd...