Sunday, September 26, 2021

Speaking Scalpel

चूजे.....ओए चमन चूजे......क्या?......सुन नहीं रहा है क्या?.....तेरे से ही बोल रहा हूँ.......क्या इधर उधर ऊपर नीचे दाएँ बाएँ देख रहा है.......मैं बोल रहा हूँ........अरे नीचे देखो.....नीचे तो देखो। 

हाँ, अब सुना न.....मतलब मीम की भाषा में बात करता हूँ तो तुरन्त बातें समझ आने लगती है। अजीब चमन चूजे हो बे। हैं.......क्या कहा...... कि पिता जी ने कहा था- मेडिकल कॉलेज में ऐश ही ऐश है। अरे रुको.... जरा सब्र करो। अभी कॉलेज के रंग ढंग शुरू तो होने दो।

हाँ तो मैं कह रहा था कि शर्म नहीं आती न जरा सी भी। इस्तेमाल करने के बाद कूड़े की तरह बक्से में डाल कर बैग के अंदर फेंक देते हो। यार कम से कम इतना तो लिहाज करो कि कल को दोबारा मुझसे ही काम लेना है। ये क्या है कि केवल पानी से धोया और चल पड़े? कम से कम सैनिटाइजर या साबुन का उपयोग कर लो। तुम्हें तो शर्म आती नहीं है। लंच ब्रेक से ठीक पहले DH में हाथों से मांस चीरते हो और लंच ब्रेक में दाँतों से। तुम तो मतलब मस्त हाथ वगैरह अच्छे से सेंट वाले साबुन से धो कर दिन भर घूमते रहते हो। सड़ना मुझे पड़ता है फैट, फॉर्मेलिन और मांस की गंदी बदबू के साथ अंधेरे कमरे में।
हाँ, सही पकड़े हो। मैं डिसेक्शन बॉक्स का राजा स्कालपेल बोल रहा हूँ। कान खोल कर सुन लो.......ये जो तुम कलियों को खुश करने के चक्कर में मुझे प्रसाद की तरह बाँटते फिरते हो न और भँवरों की तरह मँडराते रहते हो.......बहुत गंदा कटेगा तुम्हारा। मैं काटता हूँ तो सबको दिखा लेते हो न.......घाव का खून.......इनके द्वारा कटेगा तो न दिखा पाओगे न छुपा पाओगे। जो तुम सपने देख रहे हो कि हंसों का जोड़ा बनाओगे और RP में PR करोगे, सब धरा का धरा रह जायेगा।

ओए चूजे की महिला सहपाठी......किधर चल दी मुँह दबा कर हँसते हुए। तुम भी सुनो। ये क्या दिन भर हा हा ही ही करती रहती हो? DH में घुसते ही बैग कोने में फेंक कर कैडेवर पर आड़ी तिरछी रेखाएँ मार देती हो। थोड़ा प्यार से नहीं कर सकती हो? किसका गुस्सा किस पर निकालती हो? एक तो ढंग से पकड़ना आता नहीं है और पकड़ती भी हो तो फिर हड्डियों तक काट देती हो। ये क्या है मतलब? 
वैसे तुम साफ सफाई रखती हो इसलिए तुम थोड़ी अच्छी हो लेकिन तुम अक्सर भूल कैसे जाती हो मुझे कमरे में अकेला तन्हा? 
ओ..... अच्छा...... जब सब भँवरे अपना स्कालपेल लाते ही हैं तो तुम भी ला कर भीड़ क्यों बढ़ाओ या क्यों गंदा करो? गज़ब चालाक हो तुम तो।

वैसे एक बात बताओ, ये क्या रोना रहता है तुम्हारा कि हम नहीं छूएंगे, ग्लव्स नहीं पहने हैं इसलिए। हम नहीं काटेंगे क्योंकि गंदा लग रहा है। जब डिसेक्शन के लिए हाथों से स्किन उठाना है, फ्लैप बनाना है, फैट क्लियर कर के संरचनाओं का अध्ययन करना है तब किनारे चली जाती हो नाक मुँह सिकोड़ कर और जब गुरु जी पढ़ाने समझाने आते हैं तो एक हाथ नाक पर रख कर धक्का मुक्की करती हो गुरु जी के पास खड़ी हो कर समझने के लिए। Hypocrisy की भी सीमा होती है।

खैर चलो तुमलोग पढ़ाई लिखाई में मन लगाओ और डॉक्टर बनो जो दिल-दिमाग-शरीर का इलाज करे। दिल काटने तोड़ने पटकने मटकने के लिए माई बाबूजी नहीं भेजे हैं तुमको मेडिकल कॉलेज में......समझे?..... हम भी चलते हैं पढ़ने।

संदर्भ:
चूजा: प्रथम वर्ष के छात्र।
मीम: इसका मतलब नहीं समझते तो बेटा निकलो पहली फुर्सत में।
पिता जी की बातें: अब क्या बताएँ, सबको यही सुनने को मिला है कि इसके बाद ऐश है उसके बाद ऐश है। मैंने तो ऐश की एशेज(ashes) को गंगा बहा दिया।
लंच ब्रेक: मांसाहारी लोगों को बड़ी घिन आने लगती है यार।
अंधेरा कमरा: dissection बॉक्स
हंसों का जोड़ा: कोरोना काल मे मेडिकल कॉलेज का हाल भाग 1
कलियाँ, भँवरे, RP में PR: RP में PR(एक पूर्व प्रकाशित रचना)
DH: Dissection Hall/ दिल्लगी हॉल- अब जैसी जिसकी जरूरत
रेखाएँ: Incision lines
कैडेवर: Dead body
संरचना: structure

तो स्वागत कीजिये अपनी प्यारी प्यारी टिप्पणियों से हमारी इस नई रचना का।
धन्यवाद
आपका वरीय/कनीय/मित्र
वरुण(2017 बैच)
फ़ोटो क्रेडिट: प्रफ्फुल राज 2020 बैच
©Inking Scalpel®

Sunday, August 29, 2021

RP में PR

हर कॉलेज में कोई न कोई ऐसी जगह जरूर होती है जो हंसों जोड़ों के समय बिताने के लिए सुप्रसिद्ध हो जैसे स्टेडियम, पार्क, कैंटीन, आदि। ऐसी जगह जिसके होने की जानकारी तो सभी को होती है लेकिन फिर भी उसके होने वाले विभिन्न प्रयोग की जानकारी कुछ को ही होती है। कॉलेज में मौजूद हर बच्चे को उस जगह के होने वाले उपयोग की एक अलग ही जानकारी होती है। सीधे बच्चों के लिए उस जगह का सामान्य उपयोग होता है। वह उपयोग जिसके लिए उसे बनाया गया था। बाकी दूसरी प्रजाति के बच्चों के लिए जैसी जिसकी जरूरत। कभी वो जन्मदिन मनाने के जगह के रूप में काम आती है तो कभी वैलेंटाइन का दिन मनाने के जगह के रूप में। अरे शरमाये नहीं, हमें सबकी ख़बर है। हम भी तो कॉलेज के ही "बच्चे" हैं। कभी वो जगह दोस्तों के संग देर रात तक बैठकर तारों से भरे आसमान निहारते हुए गुजरती है तो कभी टीचर्स के नामकरण संस्कार से ले कर उनके वर्गीकरण पर चर्चा परिचर्चा कुछ ठंडे पेय जल और नाश्ते के साथ करते हुए। कुछ बच्चे पेयजल के अलावा भी कुछ पीने की चीज कभी कभी ले आते हैं जैसे.......लस्सी, कोल्ड ड्रिंक,****, आदि। अजी हाँ, हम बच्चे अपने शिक्षकों का नए सिरे से नामकरण संस्कार भी करते हैं। कई बार बच्चे नए नए कॉलेज में आते ही अपने लिए जोड़ीदार की तलाश में लग जाते हैं ताकि वो उनके संग P से पढ़ाई भी कर सके। P से पढ़ाई वाले हँसों के जोड़े अक्सर पुस्तकालयों में बैठे पाए जाते हैं।बाकी P से कुछ और शब्द भी होते हैं जिनका अंदाजा आपको नीचे अंत में मिल जाएगा।

हमारे कॉलेज में इसी तरह का एक स्थान है जिसे हम बच्चे प्यार से RP कह कर बुलाते हैं। 
वैसे तो इस RP का एक अच्छा सा नाम है लेकिन हमने इसका भी अलग ही नामकरण कर रखा है- रोमियो पार्क/रास्कल पार्क। हाँ तो वापस लौटते हैं RP में PR के शीर्षक पर। यहाँ की सबसे अचंभित करने वाली बात मुझे ये लगती है कि इस पार्क को शाम में सब टहलने घूमने बैठने वालों से खाली करवा दिया जाता है। फिर थोड़ी साफ़ सफाई करवा कर अच्छे से यहाँ पार्क में लगी लाइट्स से जगमग कर दिया जाता है। अगर कोई देखे उस वक़्त तो पार्क से हमारे कॉलेज के मुख्य भवन के सामने का नजारा प्रथम राष्ट्रपति के मूर्ति के साथ हल्की रौशनी के साथ बहुत ही अच्छा दृश्य देता है (ये राज की बात है कि सबको निकाले जाने के बाद भी मुझे इस दृश्य के बारे में कैसे पता है?)। 
अब ये तो पता नहीं कि सभी घुमक्कड़ जंतुओं और विद्यार्थियों को पार्क से बाहर कर के इतनी रौशनी कर के राष्ट्रपति जी को ऐसा कौन सा आंनद मिलता है। लेकिन ठीक है सबकी अपनी व्यक्तिगत जिंदगी होती है। मूर्ति की भी होगी जो वो हम सबके सामने बिताने में कतराते होंगे। वैसे सूत्रों से पता चला है कि राष्ट्रपति जी ने अक्सर अंधेरे में अपने सामने कुछ कलियों को खिलते खिलखिलाते देखा है। कुछ भँवरों को रात में पार्क में इधर उधर भटकते देखा है। खैर अब हम प्रकृति माता से तो कुछ नहीं कह सकते लेकिन फिर भी अगर प्रकृति में मौजूद कलियों और भँवरों तक हमारी यह रचना पहुँचे तो उनसे अनुरोध है कि राष्ट्रपति जी की व्यक्तिगत जिंदगी को भी थोड़ा ध्यान में रखें और फिर अपने कार्यों में संलग्न होवें। 
बाकी RP में PR की घटना कोई नई नहीं है। गुप्त सूत्रों की माने तो इसका इतिहास काफी पुराना है। RP शुरू से ही PR की जगह रही है। इसके पीछे एक पुरानी मान्यता छुपी है। जिसके अनुसार RP में PR करने से परीक्षाओं का परिणाम काफी हद तक बदल सकता है क्योंकि पार्क में करने से आप प्रकृति के करीब होते हो तो आपका तनाव काफी कम रहता है। आप मन से कर पाते हो........... P से पढ़ाई। बाकी जिसकी जैसी जरूरत वैसे उसके विचार और वैसा उसका परीक्षा में प्रदर्शन। खैर RP में PR (पढ़ाई रोजाना) तो मैंने भी किया है। खासकर परीक्षा के दिनों में जब Viva चल रहा हो या शुरू होने वाला हो तो उसके पहले RP में ही PR (पढ़ाई रोजाना) होती थी। ये तो आपने भी किया होगा।

अब हम चले पढ़ाई करने अन्यथा हमें सिलेबस का तनाव हो जाएगा और हमारे संग तो कोई जोड़ीदार भी नहीं है। बाद में सभी कहेंगे कि RP में PR वाले हमारी P से पढ़ाई की बेइज्जती करते रहते थे, अब तुम्हारा P से परिणाम बिगड़ गया न।

सन्दर्भ:
RP- अब तक तुम्हें इसका मतलब नहीं पता चला? डे स्की हो क्या? कॉलेज में रहा करो तब न पता रहेगा।
PR- पढ़ाई रोजाना/प्यार रोमांस(जिसकी जैसी जरूरत)
हंसों का जोड़ा- कोरोना काल में मेडिकल कॉलेज का हाल भाग 1
बच्चे- कॉलेज में पढ़ने वाले हम सब विद्यार्थी(खासकर UG वाले)
****- 18+ पेय पदार्थ, छोटे बच्चों के समझने की चीज नहीं है।
पुस्तकालय- लाइब्रेरी
रोमियो पार्क- हंसों के जोड़े के लिए
रास्कल पार्क- बकैतीबाज दोस्तों के समूह के लिए
घुमक्कड़ जंतुओं- कैंपस के नामुराद कुत्ते
कलियाँ- हैं....बड़ी उत्सुकता है जानने की? जो आप सोच रहे हो वही।
भँवरे- ऊपर वाला सोच लिया तो ये भी पता कर लो
संलग्न- involve

धन्यवाद
आपका वरीय/कनीय/मित्र
वरुण (२०१७ बैच)
©Inking Scalpel®

Friday, July 9, 2021

महिला छात्रावास के सामने टूटी चारपाई

शीर्षक से लग रहा कि लेखक ने महिला छात्रावास की एक और टूटी हुई चीज पकड़ ली जैसे पिछले बार महिला छात्रावास की टूटी चारदीवारी थी।

खैर इस बार ये टूटी हुई चीज भी चारदीवारी न हो कर चारपाई है(लेखक को नंबर चार......से क्या है प्यार?)। लेकिन ये गर्ल्स हॉस्टल की ही संपत्ति है या नहीं इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता(गुप्त सूत्रों से संपर्क नहीं हो सका है)।

महिला छात्रावास, जैसा कि पिछले बार बताया कि, हमेशा से लड़कों/पुरुषों के लिए एक कौतूहल का विषय रहा है चाहे तो आप इस बारे में बातें करते हुए पूरी रात गुजार सकते हैं। बस बातें मजेदार होनी चाहिए और छात्रावास की सिर्फ चारदीवारी पर केंद्रित न हो कर इसके मुख्य निवासियों पर होनी चाहिए(अरे भाई हम उन निवासियों की जीवनशैली और उनकी समस्याओं पर चर्चा की बात कर रहे हैं.......आप भी न कुछ भी सोच लेते हैं)।


अभी कुछ दिनों पहले मैं लोकडौन के बाद घर से वापस कॉलेज कैंपस लौटा। 

ये भी अजीब ही विडंबना है हम मेडिकल के छात्रों की। परीक्षा न हो तो कॉलेज को कोसते हैं और परीक्षा होने की सूचना आये तो टालने के बहाने ढूंढते हैं (खुद ने पढ़ाई नहीं की इस बारे में सोचने पर विषादग्रस्त होने का खतरा रहता है)।


घर से लौटने पर कैंपस में एक मजेदार चीज देखी। अब ये तो सर्वविदित है कि युगों युगों से महिला छात्रावास के सामने वाला पेड़ ही हम मेडिकल के छात्रों की असली मंजिल PMT रही है। जिसके लिए ही कई लोग AIPMT अर्थात नीतू जी(NEET UG) को अपनी परीक्षा के नंबर से रिझाने में लगे रहते हैं(जी हाँ, सही सुना आपने। कोटा के बच्चों को जब अपनी जवानी के शुरू में "उनके" कांटेक्ट नंबर के लिए मेहनत करना चाहिए तब वो टेस्ट में आने वाले नंबर के लिए मेहनत करते हैं)।


हमारा कॉलेज PMT से आगे बढ़ कर कुर्सी/बेंच तक पहुंच गया है(हम नई पीढ़ी के बच्चे हैं)।

गर्ल्स हॉस्टल के सामने PMT की छाँव में हमेशा लोहे की आपस में जुड़ी हुई 3 कुर्सियों वाली बेंच लगी रहती है। वो भी वहाँ इसलिए रखी हुई है क्योंकि उसमें जो बीच वाली कुर्सी थी वो किसी ने उखाड़ दी थी। अब वो दो गज की दूरी(क्योंकि हम कोरोना के नियमों का समर्थन करते हैं......दूरी की मजबूरी) वाली दो कुर्सियाँ बन गई हैं जो अब जुड़ी हुई हैं और रखी हुई है गर्ल्स हॉस्टल के सामने। अक्सर वो कुर्सी हॉट सीट रहती है हंसों के जोड़ों (कपल्स) के लिए।


कल मजेदार चीज ये देखी कि उसके सामने अब किसी ने चारपाई डाल दी है वो भी एक पैर टूटी हुई। अब ये समझ नहीं आ रहा कि किसी ने चारपाई तोड़ कर वहाँ डाल दी या वहाँ डाल कर तोड़ दी! चारपाई टूटने का तो मतलब समझते हैं ना आप?(हम फ्रैक्चर की बात कर रहे हैं.......बाकी आप जो सोच रहे हैं वो भी हो सकता है।)

अब इस चारपाई के वहाँ पहुँचने का इतिहास और उसका वर्तमान में इस्तेमाल क्या है? इस बारे में जाँच समिति का गठन करेंगे। आपको जवाब पता हो या आप इस जाँच समिति के सदस्य बनना चाहते हो तो नीचे टिप्पणी कर के जरूर बताइएगा।


संदर्भ व शब्दकोष:

शीर्षक में "टूटी" का प्रयोग विशेषण(adjective) का तौर पर है या क्रिया(verb) के तौर पर?

महिला छात्रावास की टूटी हुई चारदीवारी- इसी ब्लॉग में पहले से प्रकाशित एक रचना

विडंबना- दुविधा/समस्या

विषादग्रस्त- डिप्रेशन

PMT - पिया मिलन ट्री

नीतू जी - NEET UG हमारे कोटा वाले गुरु जी के द्वारा दिया गया नाम

कोटा- आप अपने शहर और प्रिय शिक्षक का नाम सोच लीजिये

हंसों का जोड़ा- कोरोना काल में मेडिकल कॉलेज का हाल भाग 1

चारपाई टूटना- अब इसका अर्थ भी बताना पड़ेगा?



आपका वरीय/कनीय/मित्र

वरुण(२०१७ बैच)

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Thursday, July 1, 2021

पारिवारिक चिकित्सक दिवस

जिंदगी की पहली

शिशु चिकित्सक(माता),

मनोचिकित्सक(पिता),

आयुर्वेदिक चिकित्सक कड़वी दवाई वाले (भाई),

होमियोपैथी चिकित्सक मीठी गोली वाली(बहन),

हड्डी रोग विशेषज्ञ(चाचा मामा), 

प्रसूति रोग विशेषज्ञ(बुआ मौसी), 

सामाजिक रोग विशेषज्ञ सर्जन (फूफा मौसा), 

गृहस्थी रोग विशेषज्ञ रेडियोलाजिस्ट(चाची मामी),

पारिवारिक रोग विशेषज्ञ डायग्नोस्टिक पारा क्लीनिकल(दादा नाना), 

खान पान विशेषज्ञ डायटीशियन(नानी दादी)

और सब बीमारी का इलाज करने वाले औषधि विभाग चिकित्सक(मित्र बन्धु सहपाठी सीनियर जूनियर)

को चिकित्सक दिवस पर मेरा प्रणाम और धन्यवाद।

🙏🏻🤗😁

ध्यान देने योग्य बातें:

1.मित्रों को गुप्त रोग विशेषज्ञों की भी संज्ञा दी जा सकती है।

2. बाकी विभाग के चिकित्सकों की रिश्तों में तुलना अभी बाकी है।

3. कृप्या कमेंट कर के बताएँ कि आपने अपने परिवार के किस रिश्ते में किस विभाग के चिकित्सक को देखा है।


आपका वरीय/कनीय/मित्र

वरुण एकलव्य

(२०१७ बैच)

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Friday, May 28, 2021

महिला छात्रावास की चारदीवारी

महिला छात्रावास की चारदीवारी


प्रकृति ने भी महिला छात्रावास की चारदीवारी  पर धावा बोल दिया। पहले अक्सर सिर्फ कुछ सज्जन पुरुष ही उस पर सेंध लगाया करते थे। उस टूटी हुई चारदीवारी की चर्चा आज रिम्स के हर एक प्रेमी जोड़े की चुहलबाजी का हिस्सा रहेगी। कुछ जोड़े उस टूटी हुई चारदीवारी की खिल्ली उड़ाएंगे तो कुछ जोड़े छात्रावास प्रबंधन को सुंदर शब्दों से नवाजेंगे। कुछ नए नए बने तोता मैना की जोड़ी को उसमें से आजादी की हवा आती हुई सी दिखेगी( फर्स्ट ईयर के प्रिय जूनियर्स)। 

इस कैंपस के कुछ जिम्मेदार छात्र दिन में छात्राओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो कर शायद अपने दोस्तों संग विस्तृत चर्चाएं भी करेंगे लेकिन रात होते होते वो भी उस गिरी हुई पेड़ की टहनी की ऊंचाई नापते हुए नजर आएंगे। अरे भाई आज बारिश हुई है तो ठंड तो लगेगी ही न तो बस उसके लिए। आप भी न जाने क्या क्या सोच लेते हैं। 


यूं तो महिलाओं का छात्रावास लड़कों के बीच अक्सर ही कौतूहल का विषय रहता है। खैर इनमें भी लड़कों का क्या कसूर। ये तो मानव की जिज्ञासा ही है जो हर कैद चीज का रहस्य जानने को लालायित रहती है और कुछ हॉर्मोन्स का भी इनमें योगदान होता है(अरे भाई मेडिकल कॉलेज में पढ़ते हैं तो थोड़ा बायोलॉजी का ज्ञान नहीं पेलेंगे तो कैसे पता चलेगा)। 


खैर लड़कियों के छात्रावास में प्रवेश करने का अनुभव तो मुझे कभी मिला ही नहीं लेकिन गुप्त सूत्रों(नाम लेंगे तो देशद्रोही साबित हो जाने का खतरा है) से पता चला है कि ये भी एक अलग ही दुनिया होती है। ऐसी दुनिया जिसमें चारो तरफ सिर्फ लड़कियाँ होती है। पुरुष प्रजाति के नाम पर बस गार्ड जी और मेस वाले भैया दिखते हैं। वैसे तो इस दुनिया किसी भी बाहरी व्यक्ति(चाहे वो अंदर रह रही लड़की का पिता ही क्यों न हो) का आना जाना सख्त मना है खासकर तब जब वो पुरुष हो।


लेकिन फिर भी अक्सर दूध वाला, न्यूज़पेपर वाला, पानी वाला, आदि का आना जाना लगा रहता है(शायद ये लोग पुरुष ही नहीं............. महापुरुष हैं)। 

कई बार तो हमारे तरफ़ के लड़के दूध वाले और मेस वाले भैया को पटाने में लगे रहते हैं कि भैया हमको भी एक दिन के लिए खाना दूध पहुंचाने के काम पर रख लो। बेचारे गरीब छात्र पार्ट टाइम जॉब की कोशिश कर रहे हैं (आपने कुछ और सोचा?)। 

खैर एक बात तो है कि अंदर रहने वाले पुरुष प्रजाति के सदस्य बड़े मौज में रहते हैं। जब चाहा जिसको टोक दिया डांट दिया वार्डन को कॉल करने की धमकी दे दी। 


(स्पेशल टिप- हालांकि गुप्त सूत्रों से पता चला है कि इन लोगो को एक डब्बा मिठाई और एक बोतल दारू से आराम से पटाया जा सकता है।)


वैसे इस चारदीवारी की कुछ दिन पहले ही मरम्मत हुई थी। सुरक्षा व्यवस्था के नए पुख्ता इंतजाम हुए थे लेकिन वो शायद दरवाजों के आसपास के चार ईंटों की ही सीमा तक सीमित रह गई थी शायद पैसों की कमी हो गई होगी(या फिर नियत......)।

खैर प्रकृति से पहले भी कई बार इस चारदीवारी पर सेंध मारने की कोशिशें हुई हैं। कई कोशिशें तो कामयाब भी हो गई और किसी को कानों कान खबर तक नहीं हुई। 

कुछ अफवाहें तो कहती हैं कि इस तरह की पहली लोकप्रिय सफल कोशिश हमारे कॉलेज के ही एक शिक्षक के द्वारा की गई थी और वो भी तब जब वो यहाँ अपने छात्र जीवन का मजा ले रहे थे। अब भी जब उनको देखता हूँ तो लगता नहीं है कि यही वो इंसान है जिसने ऐसा दैवीय चमत्कार दिखाया होगा। खैर गुरुजी के चरणों में दंडवत प्रणाम क्योंकि उन्होंने शालीनता से सभ्यता की मर्यादा का मान रखते हुए अंदर गए और बिना किसी को कोई परेशानी दिए बाहर भी आ गए। 

वैसे गए तो हम भी एक दो बार हैं लेकिन बाकायदा गार्ड से बात कर के और वो भी मेडिकल इमरजेंसी के कारण (देखिए हम शरीफ़ हैं........वो बात अलग है कि वापसी में बाइक खराब होने का बहाना कर टहलते हुए लौट थे)। 


लेकिन यार जो कहो अंदर का नजारा सच में लुभावना होता है। एक तो चारो ओर फूलों(सच के फूलों की बात कर रहा हूँ, कोई उपमा नहीं है) की क्यारियां लगी हुई है और सुबह की सैर के लिए रास्ते बने हुए हैं। रात में भी अंदर लगभग हर जगह रौशनी रहती ही लेकिन फिर भी कई ऐसी जगहें हैं जो अगर इस चारदीवारी के बाहर रहती तो दिन क्या रातों को भी गुलजार रहती। 

वैसे तो कई बार हमारे क्रिकेट खेलने वाले बंधु चारदीवारी के अंदर जा चुके हैं लेकिन उन्हें भी 15 कदम से ज्यादा अंदर जाने का अनुभव शायद ही मिला हो। लेकिन ये बात तो रहती है कि अंदर गई हुई गेंद को ढूंढने में अक्सर ज्यादा समय लग जाता है, शायद गेंद किसी झाड़ियों में खो जाती होंगी(या फिर नजरें..….)।


आपका वरीय/कनीय/मित्र

वरुण(2017 बैच)

©Inking Scalpel®

Saturday, March 13, 2021

कोरोना काल में मेडिकल कॉलेज का हाल भाग-२

दूसरा भाग:

चार पाँच सीनियर लड़के एक स्वीट्स एंड स्नैक्स की दुकान पर खड़े थे और वहाँ एक होस्टल का जूनियर अपने डे स्की बैचमेट के साथ आ जाता है। सभी के मुहँ पर मास्क है। डे स्की बैचमेट अपने दोस्त को छोटी सी ट्रीट दे रहा होता है।

डे स्की जूनियर: "चल ना बे! क्या सोच रहा है?"
होस्टल वाला जूनियर: "भाई रुक जरा, एप्रोन के बटन तो लगाने दे।"
डे स्की जूनियर: "अरे चल ना यार, एक तो इतनी गर्मी है ऊपर से तू बटन लगा रहा। रहने दे ना, वैसे भी कौन सा यहाँ कोई सीनियर है? " फिर रुक कर दोबारा बोला:
"चल आज मैं तुझे पार्टी देता हूँ और ये पार्टी उन कंजूस सीनियर की तरह नहीं है कि रात भर जम के पेला और फिर बस एक समोसा और कोल्ड ड्रिंक दे कर भेज दिया।"

तभी होस्टल वाले जूनियर की आँखें सीनियर्स की घूरती आँखों से टकराई।

(अब यहां से बातें आंखों के इशारे में होगी)

सीनियर ने मन में सोचा- "ई कौन से चींटी महल का तोप है बे? ई हमलोग को पहीचानता नहीं क्या?"
होस्टल जूनियर ने आंखों से विनती की- "माफ़ कर दीजिए बॉस! आइंदा से ऐसा कभी नहीं होगा।"
सीनियर ने मन में सोचा- "इसको तो बेटा अब अलग से बुलाऊँगा परिचय सत्र में, मुर्गे की तरह बांग दिलवा कर अंडा देते हुए हीरोइन की तरह नाचेगा ये अब तो।"
होस्टल जूनियर ने फिर से इशारों में विनती की- "प्लीज प्लीज बॉस हमको छोड़ दीजियेगा । मम्मी कसम, हम अब कभी भी इसके साथ नहीं घूमेंगे। गलती हो गया बॉस।"
सीनियर ने होस्टल वाले जूनियर को आँखें तरेरी- "तू तो साला पवनवा है........ तुमको तो हम शरीफ समझते थे लेकिन तुम भी.........रुको बेटा अब पूरा बैच को बुलाएंगे परिचय सत्र में।"

विशेष बिंदु- कृप्या इसे सिर्फ हास्य व्यंग्य ही समझे, जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है  (केवल बाहर वालों के लिए, बाकी अंदर की बात तो कुछ और ही है)।

इस भाग पर टिप्पणी देंगे तभी अगले भाग का प्रकाशन होगा।


धन्यवाद

आपका वरीय/कनीय/मित्र

वरुण(2017 बैच)


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Friday, November 20, 2020

कोरोना काल में मेडिकल कॉलेज का हाल भाग-१

प्रथम भाग:

दो वरीय हंसों का जोड़ा (अर्थात सीनियर कपल) मास्क लगाए हुए कॉलेज कैंपस में विचरण कर रहा है और बगल से मास्क लगा कर एक कनीय चूजा (अर्थात जूनियर लड़का) गुजर रहा है।

बॉस(वरीय हंसों के जोड़ा में पुरुष प्रजाति ) की सोच: ई नमूना कौन है बे? मास्कवा पर कुछो समझे नहीं आ रहा। साला टुकुर टुकुर इधर देख रहा है। अच्छा साला पवनवा है लगता है, इसका तो अलग से खबर लेंगे रात में बुलाएंगे इसको परिचय सत्र में। साला ढंग से 1 महीना हुआ नहीं है और हमरी बंदी पर नजर मार रहा है।


मैडम(अब इनके बारे में क्या बताएं, नशीली आंखों से ही खूबसूरती झलकती है) की सोच: न जाने काहे बुला लिया है मिलने को और अब बुलाया भी है तो उधर लड़का लोग का हॉस्टल का दरवाजा तरफ ही देख रहा है, ई नहीं कि हमरी ओर भी जरा देख ले। कितना कुछ पढ़ना है, परीक्षा नजदीक है। अच्छा ......उ तो कोई जूनियर लड़का जा रहा है ना, इधर बार बार काहे देख रहा है उ। ई सब लड़का लोग का अलगे नाटक चलता रहता है। अब हमसे 2 मिनट और ये कुछ नहीं बोला तो हम चल जाएंगे, हाँ नही तो।


कनीय लड़का की सोच: अच्छा है कि मास्क लगा लिए हैं, अब मस्त जीन्स टीशर्ट पहिन कर पर्फ्यूम मार कर फोकस में घूमेंगे, कौनो पहचानेगा भी नहीं........... अरे राम! राम! राम! ई किसको देख लिए भाई? .......साला लंगूर के हाथ में अंगूर। ई तो वही बोसवा है ना जो आँखें दिखा कर डरा देता है। इसको तो साला सबका नाम तक याद रहता है, लगता है कि दवा छोड़ कर हमहि लोग का नाम रटता रहता है। ई देखो तो कितनी खूबसूरत और मासूम मैडम को घुमा रहा है और एक हमरे बैच में सब की सब नकचढ़ी और बहन जी भरी पड़ी हैं। ना अक्ल न शक्ल और भाव खाती है किलो भर का जैसे भाव से ही पेट भरेगी। अरे बाप रे! ई बोसवा तो इधरे देख रहा है। भाग रे पवनवा मास्क टाइट कर के नहीं तो रात में पैंट ढीला और गीला दोनों करवा देगा ई बोसवा।



आपकी मेरी बातें: बस अब आपके प्यार का इंतजार है, मिलेगा तो इसके और भी भाग लिखूंगा अन्यथा इसका सफ़र यहीं तक था। धन्यवाद। कृप्या टिप्पणी करें कि आपको इसमें क्या पसंद आया।


आपका वरीय/कनीय/मित्र

वरुण (2017 बैच)

©Inking Scalpel®