A MEDICO'S DIARY
revealing personal and social experiences of a medical student
Sunday, September 26, 2021
Speaking Scalpel
Sunday, August 29, 2021
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Friday, July 9, 2021
महिला छात्रावास के सामने टूटी चारपाई
शीर्षक से लग रहा कि लेखक ने महिला छात्रावास की एक और टूटी हुई चीज पकड़ ली जैसे पिछले बार महिला छात्रावास की टूटी चारदीवारी थी।
खैर इस बार ये टूटी हुई चीज भी चारदीवारी न हो कर चारपाई है(लेखक को नंबर चार......से क्या है प्यार?)। लेकिन ये गर्ल्स हॉस्टल की ही संपत्ति है या नहीं इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता(गुप्त सूत्रों से संपर्क नहीं हो सका है)।
महिला छात्रावास, जैसा कि पिछले बार बताया कि, हमेशा से लड़कों/पुरुषों के लिए एक कौतूहल का विषय रहा है चाहे तो आप इस बारे में बातें करते हुए पूरी रात गुजार सकते हैं। बस बातें मजेदार होनी चाहिए और छात्रावास की सिर्फ चारदीवारी पर केंद्रित न हो कर इसके मुख्य निवासियों पर होनी चाहिए(अरे भाई हम उन निवासियों की जीवनशैली और उनकी समस्याओं पर चर्चा की बात कर रहे हैं.......आप भी न कुछ भी सोच लेते हैं)।
अभी कुछ दिनों पहले मैं लोकडौन के बाद घर से वापस कॉलेज कैंपस लौटा।
ये भी अजीब ही विडंबना है हम मेडिकल के छात्रों की। परीक्षा न हो तो कॉलेज को कोसते हैं और परीक्षा होने की सूचना आये तो टालने के बहाने ढूंढते हैं (खुद ने पढ़ाई नहीं की इस बारे में सोचने पर विषादग्रस्त होने का खतरा रहता है)।
घर से लौटने पर कैंपस में एक मजेदार चीज देखी। अब ये तो सर्वविदित है कि युगों युगों से महिला छात्रावास के सामने वाला पेड़ ही हम मेडिकल के छात्रों की असली मंजिल PMT रही है। जिसके लिए ही कई लोग AIPMT अर्थात नीतू जी(NEET UG) को अपनी परीक्षा के नंबर से रिझाने में लगे रहते हैं(जी हाँ, सही सुना आपने। कोटा के बच्चों को जब अपनी जवानी के शुरू में "उनके" कांटेक्ट नंबर के लिए मेहनत करना चाहिए तब वो टेस्ट में आने वाले नंबर के लिए मेहनत करते हैं)।
हमारा कॉलेज PMT से आगे बढ़ कर कुर्सी/बेंच तक पहुंच गया है(हम नई पीढ़ी के बच्चे हैं)।
गर्ल्स हॉस्टल के सामने PMT की छाँव में हमेशा लोहे की आपस में जुड़ी हुई 3 कुर्सियों वाली बेंच लगी रहती है। वो भी वहाँ इसलिए रखी हुई है क्योंकि उसमें जो बीच वाली कुर्सी थी वो किसी ने उखाड़ दी थी। अब वो दो गज की दूरी(क्योंकि हम कोरोना के नियमों का समर्थन करते हैं......दूरी की मजबूरी) वाली दो कुर्सियाँ बन गई हैं जो अब जुड़ी हुई हैं और रखी हुई है गर्ल्स हॉस्टल के सामने। अक्सर वो कुर्सी हॉट सीट रहती है हंसों के जोड़ों (कपल्स) के लिए।
कल मजेदार चीज ये देखी कि उसके सामने अब किसी ने चारपाई डाल दी है वो भी एक पैर टूटी हुई। अब ये समझ नहीं आ रहा कि किसी ने चारपाई तोड़ कर वहाँ डाल दी या वहाँ डाल कर तोड़ दी! चारपाई टूटने का तो मतलब समझते हैं ना आप?(हम फ्रैक्चर की बात कर रहे हैं.......बाकी आप जो सोच रहे हैं वो भी हो सकता है।)
अब इस चारपाई के वहाँ पहुँचने का इतिहास और उसका वर्तमान में इस्तेमाल क्या है? इस बारे में जाँच समिति का गठन करेंगे। आपको जवाब पता हो या आप इस जाँच समिति के सदस्य बनना चाहते हो तो नीचे टिप्पणी कर के जरूर बताइएगा।
संदर्भ व शब्दकोष:
शीर्षक में "टूटी" का प्रयोग विशेषण(adjective) का तौर पर है या क्रिया(verb) के तौर पर?
महिला छात्रावास की टूटी हुई चारदीवारी- इसी ब्लॉग में पहले से प्रकाशित एक रचना
विडंबना- दुविधा/समस्या
विषादग्रस्त- डिप्रेशन
PMT - पिया मिलन ट्री
नीतू जी - NEET UG हमारे कोटा वाले गुरु जी के द्वारा दिया गया नाम
कोटा- आप अपने शहर और प्रिय शिक्षक का नाम सोच लीजिये
हंसों का जोड़ा- कोरोना काल में मेडिकल कॉलेज का हाल भाग 1
चारपाई टूटना- अब इसका अर्थ भी बताना पड़ेगा?
आपका वरीय/कनीय/मित्र
वरुण(२०१७ बैच)
©Inking Scalpel®
Thursday, July 1, 2021
पारिवारिक चिकित्सक दिवस
जिंदगी की पहली
शिशु चिकित्सक(माता),
मनोचिकित्सक(पिता),
आयुर्वेदिक चिकित्सक कड़वी दवाई वाले (भाई),
होमियोपैथी चिकित्सक मीठी गोली वाली(बहन),
हड्डी रोग विशेषज्ञ(चाचा मामा),
प्रसूति रोग विशेषज्ञ(बुआ मौसी),
सामाजिक रोग विशेषज्ञ सर्जन (फूफा मौसा),
गृहस्थी रोग विशेषज्ञ रेडियोलाजिस्ट(चाची मामी),
पारिवारिक रोग विशेषज्ञ डायग्नोस्टिक पारा क्लीनिकल(दादा नाना),
खान पान विशेषज्ञ डायटीशियन(नानी दादी)
और सब बीमारी का इलाज करने वाले औषधि विभाग चिकित्सक(मित्र बन्धु सहपाठी सीनियर जूनियर)
को चिकित्सक दिवस पर मेरा प्रणाम और धन्यवाद।
🙏🏻🤗😁
ध्यान देने योग्य बातें:
1.मित्रों को गुप्त रोग विशेषज्ञों की भी संज्ञा दी जा सकती है।
2. बाकी विभाग के चिकित्सकों की रिश्तों में तुलना अभी बाकी है।
3. कृप्या कमेंट कर के बताएँ कि आपने अपने परिवार के किस रिश्ते में किस विभाग के चिकित्सक को देखा है।
आपका वरीय/कनीय/मित्र
वरुण एकलव्य
(२०१७ बैच)
©Inking Scalpel®
Friday, May 28, 2021
महिला छात्रावास की चारदीवारी
महिला छात्रावास की चारदीवारी
प्रकृति ने भी महिला छात्रावास की चारदीवारी पर धावा बोल दिया। पहले अक्सर सिर्फ कुछ सज्जन पुरुष ही उस पर सेंध लगाया करते थे। उस टूटी हुई चारदीवारी की चर्चा आज रिम्स के हर एक प्रेमी जोड़े की चुहलबाजी का हिस्सा रहेगी। कुछ जोड़े उस टूटी हुई चारदीवारी की खिल्ली उड़ाएंगे तो कुछ जोड़े छात्रावास प्रबंधन को सुंदर शब्दों से नवाजेंगे। कुछ नए नए बने तोता मैना की जोड़ी को उसमें से आजादी की हवा आती हुई सी दिखेगी( फर्स्ट ईयर के प्रिय जूनियर्स)।
इस कैंपस के कुछ जिम्मेदार छात्र दिन में छात्राओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो कर शायद अपने दोस्तों संग विस्तृत चर्चाएं भी करेंगे लेकिन रात होते होते वो भी उस गिरी हुई पेड़ की टहनी की ऊंचाई नापते हुए नजर आएंगे। अरे भाई आज बारिश हुई है तो ठंड तो लगेगी ही न तो बस उसके लिए। आप भी न जाने क्या क्या सोच लेते हैं।
यूं तो महिलाओं का छात्रावास लड़कों के बीच अक्सर ही कौतूहल का विषय रहता है। खैर इनमें भी लड़कों का क्या कसूर। ये तो मानव की जिज्ञासा ही है जो हर कैद चीज का रहस्य जानने को लालायित रहती है और कुछ हॉर्मोन्स का भी इनमें योगदान होता है(अरे भाई मेडिकल कॉलेज में पढ़ते हैं तो थोड़ा बायोलॉजी का ज्ञान नहीं पेलेंगे तो कैसे पता चलेगा)।
खैर लड़कियों के छात्रावास में प्रवेश करने का अनुभव तो मुझे कभी मिला ही नहीं लेकिन गुप्त सूत्रों(नाम लेंगे तो देशद्रोही साबित हो जाने का खतरा है) से पता चला है कि ये भी एक अलग ही दुनिया होती है। ऐसी दुनिया जिसमें चारो तरफ सिर्फ लड़कियाँ होती है। पुरुष प्रजाति के नाम पर बस गार्ड जी और मेस वाले भैया दिखते हैं। वैसे तो इस दुनिया किसी भी बाहरी व्यक्ति(चाहे वो अंदर रह रही लड़की का पिता ही क्यों न हो) का आना जाना सख्त मना है खासकर तब जब वो पुरुष हो।
लेकिन फिर भी अक्सर दूध वाला, न्यूज़पेपर वाला, पानी वाला, आदि का आना जाना लगा रहता है(शायद ये लोग पुरुष ही नहीं............. महापुरुष हैं)।
कई बार तो हमारे तरफ़ के लड़के दूध वाले और मेस वाले भैया को पटाने में लगे रहते हैं कि भैया हमको भी एक दिन के लिए खाना दूध पहुंचाने के काम पर रख लो। बेचारे गरीब छात्र पार्ट टाइम जॉब की कोशिश कर रहे हैं (आपने कुछ और सोचा?)।
खैर एक बात तो है कि अंदर रहने वाले पुरुष प्रजाति के सदस्य बड़े मौज में रहते हैं। जब चाहा जिसको टोक दिया डांट दिया वार्डन को कॉल करने की धमकी दे दी।
(स्पेशल टिप- हालांकि गुप्त सूत्रों से पता चला है कि इन लोगो को एक डब्बा मिठाई और एक बोतल दारू से आराम से पटाया जा सकता है।)
वैसे इस चारदीवारी की कुछ दिन पहले ही मरम्मत हुई थी। सुरक्षा व्यवस्था के नए पुख्ता इंतजाम हुए थे लेकिन वो शायद दरवाजों के आसपास के चार ईंटों की ही सीमा तक सीमित रह गई थी शायद पैसों की कमी हो गई होगी(या फिर नियत......)।
खैर प्रकृति से पहले भी कई बार इस चारदीवारी पर सेंध मारने की कोशिशें हुई हैं। कई कोशिशें तो कामयाब भी हो गई और किसी को कानों कान खबर तक नहीं हुई।
कुछ अफवाहें तो कहती हैं कि इस तरह की पहली लोकप्रिय सफल कोशिश हमारे कॉलेज के ही एक शिक्षक के द्वारा की गई थी और वो भी तब जब वो यहाँ अपने छात्र जीवन का मजा ले रहे थे। अब भी जब उनको देखता हूँ तो लगता नहीं है कि यही वो इंसान है जिसने ऐसा दैवीय चमत्कार दिखाया होगा। खैर गुरुजी के चरणों में दंडवत प्रणाम क्योंकि उन्होंने शालीनता से सभ्यता की मर्यादा का मान रखते हुए अंदर गए और बिना किसी को कोई परेशानी दिए बाहर भी आ गए।
वैसे गए तो हम भी एक दो बार हैं लेकिन बाकायदा गार्ड से बात कर के और वो भी मेडिकल इमरजेंसी के कारण (देखिए हम शरीफ़ हैं........वो बात अलग है कि वापसी में बाइक खराब होने का बहाना कर टहलते हुए लौट थे)।
लेकिन यार जो कहो अंदर का नजारा सच में लुभावना होता है। एक तो चारो ओर फूलों(सच के फूलों की बात कर रहा हूँ, कोई उपमा नहीं है) की क्यारियां लगी हुई है और सुबह की सैर के लिए रास्ते बने हुए हैं। रात में भी अंदर लगभग हर जगह रौशनी रहती ही लेकिन फिर भी कई ऐसी जगहें हैं जो अगर इस चारदीवारी के बाहर रहती तो दिन क्या रातों को भी गुलजार रहती।
वैसे तो कई बार हमारे क्रिकेट खेलने वाले बंधु चारदीवारी के अंदर जा चुके हैं लेकिन उन्हें भी 15 कदम से ज्यादा अंदर जाने का अनुभव शायद ही मिला हो। लेकिन ये बात तो रहती है कि अंदर गई हुई गेंद को ढूंढने में अक्सर ज्यादा समय लग जाता है, शायद गेंद किसी झाड़ियों में खो जाती होंगी(या फिर नजरें..….)।
आपका वरीय/कनीय/मित्र
वरुण(2017 बैच)
©Inking Scalpel®
Saturday, March 13, 2021
कोरोना काल में मेडिकल कॉलेज का हाल भाग-२
दूसरा भाग:
चार पाँच सीनियर लड़के एक स्वीट्स एंड स्नैक्स की दुकान पर खड़े थे और वहाँ एक होस्टल का जूनियर अपने डे स्की बैचमेट के साथ आ जाता है। सभी के मुहँ पर मास्क है। डे स्की बैचमेट अपने दोस्त को छोटी सी ट्रीट दे रहा होता है।
डे स्की जूनियर: "चल ना बे! क्या सोच रहा है?"
होस्टल वाला जूनियर: "भाई रुक जरा, एप्रोन के बटन तो लगाने दे।"
डे स्की जूनियर: "अरे चल ना यार, एक तो इतनी गर्मी है ऊपर से तू बटन लगा रहा। रहने दे ना, वैसे भी कौन सा यहाँ कोई सीनियर है? " फिर रुक कर दोबारा बोला:
"चल आज मैं तुझे पार्टी देता हूँ और ये पार्टी उन कंजूस सीनियर की तरह नहीं है कि रात भर जम के पेला और फिर बस एक समोसा और कोल्ड ड्रिंक दे कर भेज दिया।"
तभी होस्टल वाले जूनियर की आँखें सीनियर्स की घूरती आँखों से टकराई।
(अब यहां से बातें आंखों के इशारे में होगी)
सीनियर ने मन में सोचा- "ई कौन से चींटी महल का तोप है बे? ई हमलोग को पहीचानता नहीं क्या?"
होस्टल जूनियर ने आंखों से विनती की- "माफ़ कर दीजिए बॉस! आइंदा से ऐसा कभी नहीं होगा।"
सीनियर ने मन में सोचा- "इसको तो बेटा अब अलग से बुलाऊँगा परिचय सत्र में, मुर्गे की तरह बांग दिलवा कर अंडा देते हुए हीरोइन की तरह नाचेगा ये अब तो।"
होस्टल जूनियर ने फिर से इशारों में विनती की- "प्लीज प्लीज बॉस हमको छोड़ दीजियेगा । मम्मी कसम, हम अब कभी भी इसके साथ नहीं घूमेंगे। गलती हो गया बॉस।"
सीनियर ने होस्टल वाले जूनियर को आँखें तरेरी- "तू तो साला पवनवा है........ तुमको तो हम शरीफ समझते थे लेकिन तुम भी.........रुको बेटा अब पूरा बैच को बुलाएंगे परिचय सत्र में।"
विशेष बिंदु- कृप्या इसे सिर्फ हास्य व्यंग्य ही समझे, जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है (केवल बाहर वालों के लिए, बाकी अंदर की बात तो कुछ और ही है)।
इस भाग पर टिप्पणी देंगे तभी अगले भाग का प्रकाशन होगा।
धन्यवाद
आपका वरीय/कनीय/मित्र
वरुण(2017 बैच)
©Inking Scalpel®
Friday, November 20, 2020
कोरोना काल में मेडिकल कॉलेज का हाल भाग-१
प्रथम भाग:
दो वरीय हंसों का जोड़ा (अर्थात सीनियर कपल) मास्क लगाए हुए कॉलेज कैंपस में विचरण कर रहा है और बगल से मास्क लगा कर एक कनीय चूजा (अर्थात जूनियर लड़का) गुजर रहा है।
बॉस(वरीय हंसों के जोड़ा में पुरुष प्रजाति ) की सोच: ई नमूना कौन है बे? मास्कवा पर कुछो समझे नहीं आ रहा। साला टुकुर टुकुर इधर देख रहा है। अच्छा साला पवनवा है लगता है, इसका तो अलग से खबर लेंगे रात में बुलाएंगे इसको परिचय सत्र में। साला ढंग से 1 महीना हुआ नहीं है और हमरी बंदी पर नजर मार रहा है।
मैडम(अब इनके बारे में क्या बताएं, नशीली आंखों से ही खूबसूरती झलकती है) की सोच: न जाने काहे बुला लिया है मिलने को और अब बुलाया भी है तो उधर लड़का लोग का हॉस्टल का दरवाजा तरफ ही देख रहा है, ई नहीं कि हमरी ओर भी जरा देख ले। कितना कुछ पढ़ना है, परीक्षा नजदीक है। अच्छा ......उ तो कोई जूनियर लड़का जा रहा है ना, इधर बार बार काहे देख रहा है उ। ई सब लड़का लोग का अलगे नाटक चलता रहता है। अब हमसे 2 मिनट और ये कुछ नहीं बोला तो हम चल जाएंगे, हाँ नही तो।
कनीय लड़का की सोच: अच्छा है कि मास्क लगा लिए हैं, अब मस्त जीन्स टीशर्ट पहिन कर पर्फ्यूम मार कर फोकस में घूमेंगे, कौनो पहचानेगा भी नहीं........... अरे राम! राम! राम! ई किसको देख लिए भाई? .......साला लंगूर के हाथ में अंगूर। ई तो वही बोसवा है ना जो आँखें दिखा कर डरा देता है। इसको तो साला सबका नाम तक याद रहता है, लगता है कि दवा छोड़ कर हमहि लोग का नाम रटता रहता है। ई देखो तो कितनी खूबसूरत और मासूम मैडम को घुमा रहा है और एक हमरे बैच में सब की सब नकचढ़ी और बहन जी भरी पड़ी हैं। ना अक्ल न शक्ल और भाव खाती है किलो भर का जैसे भाव से ही पेट भरेगी। अरे बाप रे! ई बोसवा तो इधरे देख रहा है। भाग रे पवनवा मास्क टाइट कर के नहीं तो रात में पैंट ढीला और गीला दोनों करवा देगा ई बोसवा।